Hello there !!
The leisurely moments when I happen to be at complete peace, I candidly pen down the lines, which surroundings had engraved deep
in my mind and hence, the name. You are the most welcome here and thanks a lot for stopping by. Feel free to drop your kind words :)

Friday, 24 May 2013

पाँचवें दिन की बख्शीश

यूँ  तो कहने को संभल गया था मैं , चंद  रोज़ के बाद ही 
पर  हकीक़त तो है , की तेरी याद में गुज़रा है ये साल भी
अब के बसंत , घर-घर आँगन में जब , मीठे आमों की पाल 1 थी 
पेड़ जो कभी लगाया था बगीचे में मैंने , न उसमे एक भी बौर की डाल 2 थी | 


फूल जो दिया था ग़ुलाब का मैंने , तुम्हारी किसी क़िताब में सूख गया 
क़िताब तो कई बार पढ़ी थी तुमने लेकिन , वो पन्ना ही खुलने से चूक गया
अबके जेठ 3 ही लीपी 4 थी घर की छत मग़र , आषाढ़ 5 की बारिश में ही फ़ानूस 6 भीग गया 
जूता भी लटकाया था 'अँकुर ' ने घर की चौखट 7 पे लेकिन , न जाने कौन आके टोना 8 फूँक गया |



वो सीधी सड़क , जिस पर  चलते थे पैदल , उसके अंत को नाहक 9 ताकता हूँ 
होती  है जो दरवाज़े पे आहट , तो दरीचा 10 खोल के झाँकता हूँ 
ढूँढ़ने निकलता हूँ तुझको , इन  गलियों में जब , हर रोज़ दर-दर की मैं धूल फाँकता हूँ
जर्जर 11 हो गया है ये बदन का लिबास , इसको अपनी ठन्डी साँसों  से टाँकता 12 हूँ 
डर है मुझको , कल आ न जाए कहीं वो , ज़िन्दगी ख़त्म है मेरी आज , मैं ये जानता हूँ 
चार दिन की ज़िन्दगी में बढ़ा दे एक दिन , मैं पाँचवें दिन की तुझे बख्शीश 13 बाँटता  हूँ      || 



 

1Storage of fruits to get them ripened, 2Buds which grow into mangoes, 3A summer hindi month,
4To daub,  5A hindi month just before mansoon,  6Chandelier,  7Entrance,  8Cast a Spell/Voodoo,
9Purposelessly,  10A small window in doors/Sally-port,  11Ramshackled/Ruined,  12To stitch,  13Tip

गंदे हो कितने

आडवाणी भाजपा को दुलारे 1 थे जितने 
हमको आप प्यारे थे उतने 
अमेरिका ने भी इराक़ पे ,  न बम गिराए थे इतने 
आप की ख़ातिर हमने सपने सजाए  थे जितने  । 

कलमाड़ी  ने कॉमन वेल्थ से , रुपए कमाए थे जितने 
उससे ज्यादा के टॉप -अप और टेरिफ़ प्लान्स डलवाए थे हमने 
न होंगे बिसात-ए-आसमाँ 2 में , झिलमिलाते नजूम 3 भी इतने
इज़हार-ए-मोहब्बत 4 में हमने , SMS भेजे थे जितने  ।

छोड़ के हमको चले गए , दे गए ज़िन्दगी में ग़म वो कितने 
स्कैम्स 5 के लिए काँग्रेस को भी न दिए होंगे , CAG  ने जितने
और याद में आपकी रो-रो के आँसू बहाए हैं इतने
देश के नेताओं ने स्विस बैंक्स में रूपए न छिपाए होंगे जितने । 

और नॉटी जोक 6 सुनाता था जब , याद है मुझको 
कहती  थी तुम  " छि ! गंदे हो कितने " ।

सुना है हो गयी है मँगनी 7 ,  और अब शादी की है तैयारी 
दूल्हा मिल गया है मुंबई का , ठुकरा  के हमको क़िस्मत बुलंद 8 है तुम्हारी
पर सुना है बड़े शहर में होता है धुआँ बहुत , गाड़ियाँ भी चलती है भारी 
ज़रा देख समझ लेना , डर  है मुझको , न हो कहीं उसे दमे की बीमारी 9 
ख़ुदा न करे , सुहाग़ रात में कहीं उखड़ गयी जो उसकी साँसें ,
तो कोसती 10 रह जाओगी तकदीर को ज़िन्दगानी सारी ॥



 

1Beloved, 2The extend of sky, 3Stars, 4In order to express love,  5Scams,
6Naughty joke,  7Engagement,  8Strong, 9Asthma,  10To Condemn

Thursday, 9 May 2013

इश्क़ का घूँट

खो जाता हूँ जब , काजल सी स्याह 1 तेरी निगाहों में
भूल जाता हूँ गलियाँ , मैं तेरी इन राहों में
गिनता हूँ घड़ियाँ , पल पल बदलती तेरी अदाओं में
बहक जाता हूँ मैं , तुझसे उड़ती ख़ुशबू भरी हवाओं में

खो जाता हूँ जब , काजल सी स्याह तेरी निगाहों में .....

खो के संभला , तो झील सी आँखों में डूबा
बिता दूँ सदियाँ , ऐसा ये मंजर  अनूठा 2
गवाएँ हैं होश , और साँसों से टूटा
अब दिल है खिलौना , जो धड़कन से रूठा

तीर नज़र का मारा  जो तूने , इस खिलौने का काँच  भी फ़ूटा
(और ) बाज़ार-ए -इश्क़ 3 महँगा बहुत था, मिलके सब हुस्न 4 वालों ने लूटा
न आता यकीन, हकीक़त  है ये , लगता है मुझको तो ख़्वाब तू झूठा
कहती ये दुनिया , इश्क़ का घूँट 5 है कड़वा6 , भर दो पैमाने 7 'अँकुर ' को लगता है मीठा

दिखती है तस्वीर तेरी , इन मीठे पैमानों में
बुनता हूँ हकीक़त मैं , इन झूठे अरमानों में
तोड़ता हूँ तारे मैं, चाँदनी भरे आसमानों में
(और) देखता हूँ ज़न्नत , पत - झड़ के सूखे वीरानों 8 में

खो जाता हूँ जब , काजल सी स्याह तेरी निगाहों में ..... ॥ 




 

1Intense black, 2Unique, 3Market of love, 4Beauty,  5Gulp,
6Bitter,  7Cup/Measure, 8Abandoned place

सोने की चिड़िया


सड़क पर  चलते ये  सैकड़ों  लोग ,
चमकती हेडलाइट्स  और इंजन के शोर ,
सिर  से ढलकता  पसीना  और पैरों  की दौड़ ,
सिग्नल पर रुकना और आगे निकलने  की होड़ 1 ,

स्कूल बस की खिड़कियों से झाँकती उत्सुकता ,
और काले शीशों में बंद एलीट क्लास  जनता ,
बचपन की खुशियों की ख़ातिर नींबू  बेंचती ममता ,
और नकली शो-ऑफ के  साये में खो  रही मानवता ,

नये  दौर की झूठी चमक, लोगों को बाँट  रही है भूख़ ,
प्रोसेस्ड फ़ूड से डरता है किसान ,उसकी ज़मीन रही है सूख ,
कॉल सेन्टर पे जहाँ भर से बात करने वाला , अपने पड़ोसी  से रहता है मूक 2,

पहले  ही खो चुके थे सोना इस चिड़िया का , चांदी तो रहने दे , अब इसे तो ना  लूट || 



 

1Competition, 2Silent/Mute