Hello there !!
The leisurely moments when I happen to be at complete peace, I candidly pen down the lines, which surroundings had engraved deep
in my mind and hence, the name. You are the most welcome here and thanks a lot for stopping by. Feel free to drop your kind words :)

Tuesday, 29 April 2014

भारत : एक लोकतंत्र

बात करें कुछ लोकतंत्र की , देश बड़ा घबराया है
राजनीति के जंगल में अब , घमासान फिर छाया है ।

दो बार विगत सरकारों में , हाथ कमल झकझोरे था
बाबरी और पटिया का हड़कम्प , खेल भाग्य सब फोड़े था ।

नरसिम्हा का उपहार था जो , वो
कुशल योग्य पाक-साफ वित्त मंत्री
दस वर्षो के बाद कहलाया , भ्रष्ट मूक मात्र गाँधियों का संत्री ।

बातें बीती बहुत हुई अब , फिर इतिहास सब भूले हैं
पुत्र पिता की राह चला है , भ्रमर कमल फिर झूले हैं ।

माँ का आशीर्वाद लिए पुत्र , महिलाओं को देता थपकी
और कहता आँख मूँद के , हर हाथ शक्ति हर हाथ तरक्की

उधर सिंह गुजरात का कहता , जंगल में सब मतवाले हैं
जनता को ढाँढस देता , डरो नहीं ! अब अच्छे दिन आने वाले हैं

नेता वरिष्ठ जो भाव विभोर हो , यात्रा रथों की करते थे
अब कुर्सी-लिप्सा के चलते , दल में अंदर बाहर दिखते हैं ।

राजनीति दशकों
तक करके भी , सिंह मात खा जाते हैं
पर फ़िल्मी दुनिया के अभिनेता , त्वरित टिकट  पा जाते हैं ।

मंच चढ़ नेता भाँषण देता , युवाओं का ख़ून गरम है
हो जाती है उनसे गलती , फाँसी का क़ानून ग़लत  है ।

पिता को हो गयी जेल तो , बेटी राजनीति मंच चढ़ बैठी है
अटल नेताओं की ' विदिशा ' में , आकाँक्षा  स्वराज की भूखी है ।

प्रधानमँत्री कार्यालय से , पुस्तकें छपवायी जाती हैं
बिक जाता है 'अँकुर ' देखो , यहाँ  कीमतें लगाई जाती हैं ।

देश का दुर्भाग्य तो देखो , वोट-बैंक से सिंहासन
लुट जाता है
और आप बनाए सरकार तो , स्नातक झापड़ खा जाता है ।

वाराणसी की पावन भूमि , युद्ध-स्थल बन जाती है
मुद्दों का टोटा है , धर्मार्थ राजनीति चलाई जाती है ।

भारत का लोकतंत्र ,जनतंत्र बड़ा निराला है
कहने को  जनता का , राजनीतिज्ञों का प्याला है ।

निचोड़ के वे प्रजा को , ये प्याला भर लेते हैं
आजीवन इसके घूँट लगा के , मरणासन जय स्वदेश कह देते हैं ॥ 



        

Friday, 24 May 2013

पाँचवें दिन की बख्शीश

यूँ  तो कहने को संभल गया था मैं , चंद  रोज़ के बाद ही 
पर  हकीक़त तो है , की तेरी याद में गुज़रा है ये साल भी
अब के बसंत , घर-घर आँगन में जब , मीठे आमों की पाल 1 थी 
पेड़ जो कभी लगाया था बगीचे में मैंने , न उसमे एक भी बौर की डाल 2 थी | 


फूल जो दिया था ग़ुलाब का मैंने , तुम्हारी किसी क़िताब में सूख गया 
क़िताब तो कई बार पढ़ी थी तुमने लेकिन , वो पन्ना ही खुलने से चूक गया
अबके जेठ 3 ही लीपी 4 थी घर की छत मग़र , आषाढ़ 5 की बारिश में ही फ़ानूस 6 भीग गया 
जूता भी लटकाया था 'अँकुर ' ने घर की चौखट 7 पे लेकिन , न जाने कौन आके टोना 8 फूँक गया |



वो सीधी सड़क , जिस पर  चलते थे पैदल , उसके अंत को नाहक 9 ताकता हूँ 
होती  है जो दरवाज़े पे आहट , तो दरीचा 10 खोल के झाँकता हूँ 
ढूँढ़ने निकलता हूँ तुझको , इन  गलियों में जब , हर रोज़ दर-दर की मैं धूल फाँकता हूँ
जर्जर 11 हो गया है ये बदन का लिबास , इसको अपनी ठन्डी साँसों  से टाँकता 12 हूँ 
डर है मुझको , कल आ न जाए कहीं वो , ज़िन्दगी ख़त्म है मेरी आज , मैं ये जानता हूँ 
चार दिन की ज़िन्दगी में बढ़ा दे एक दिन , मैं पाँचवें दिन की तुझे बख्शीश 13 बाँटता  हूँ      || 



 

1Storage of fruits to get them ripened, 2Buds which grow into mangoes, 3A summer hindi month,
4To daub,  5A hindi month just before mansoon,  6Chandelier,  7Entrance,  8Cast a Spell/Voodoo,
9Purposelessly,  10A small window in doors/Sally-port,  11Ramshackled/Ruined,  12To stitch,  13Tip

गंदे हो कितने

आडवाणी भाजपा को दुलारे 1 थे जितने 
हमको आप प्यारे थे उतने 
अमेरिका ने भी इराक़ पे ,  न बम गिराए थे इतने 
आप की ख़ातिर हमने सपने सजाए  थे जितने  । 

कलमाड़ी  ने कॉमन वेल्थ से , रुपए कमाए थे जितने 
उससे ज्यादा के टॉप -अप और टेरिफ़ प्लान्स डलवाए थे हमने 
न होंगे बिसात-ए-आसमाँ 2 में , झिलमिलाते नजूम 3 भी इतने
इज़हार-ए-मोहब्बत 4 में हमने , SMS भेजे थे जितने  ।

छोड़ के हमको चले गए , दे गए ज़िन्दगी में ग़म वो कितने 
स्कैम्स 5 के लिए काँग्रेस को भी न दिए होंगे , CAG  ने जितने
और याद में आपकी रो-रो के आँसू बहाए हैं इतने
देश के नेताओं ने स्विस बैंक्स में रूपए न छिपाए होंगे जितने । 

और नॉटी जोक 6 सुनाता था जब , याद है मुझको 
कहती  थी तुम  " छि ! गंदे हो कितने " ।

सुना है हो गयी है मँगनी 7 ,  और अब शादी की है तैयारी 
दूल्हा मिल गया है मुंबई का , ठुकरा  के हमको क़िस्मत बुलंद 8 है तुम्हारी
पर सुना है बड़े शहर में होता है धुआँ बहुत , गाड़ियाँ भी चलती है भारी 
ज़रा देख समझ लेना , डर  है मुझको , न हो कहीं उसे दमे की बीमारी 9 
ख़ुदा न करे , सुहाग़ रात में कहीं उखड़ गयी जो उसकी साँसें ,
तो कोसती 10 रह जाओगी तकदीर को ज़िन्दगानी सारी ॥



 

1Beloved, 2The extend of sky, 3Stars, 4In order to express love,  5Scams,
6Naughty joke,  7Engagement,  8Strong, 9Asthma,  10To Condemn

Thursday, 9 May 2013

इश्क़ का घूँट

खो जाता हूँ जब , काजल सी स्याह 1 तेरी निगाहों में
भूल जाता हूँ गलियाँ , मैं तेरी इन राहों में
गिनता हूँ घड़ियाँ , पल पल बदलती तेरी अदाओं में
बहक जाता हूँ मैं , तुझसे उड़ती ख़ुशबू भरी हवाओं में

खो जाता हूँ जब , काजल सी स्याह तेरी निगाहों में .....

खो के संभला , तो झील सी आँखों में डूबा
बिता दूँ सदियाँ , ऐसा ये मंजर  अनूठा 2
गवाएँ हैं होश , और साँसों से टूटा
अब दिल है खिलौना , जो धड़कन से रूठा

तीर नज़र का मारा  जो तूने , इस खिलौने का काँच  भी फ़ूटा
(और ) बाज़ार-ए -इश्क़ 3 महँगा बहुत था, मिलके सब हुस्न 4 वालों ने लूटा
न आता यकीन, हकीक़त  है ये , लगता है मुझको तो ख़्वाब तू झूठा
कहती ये दुनिया , इश्क़ का घूँट 5 है कड़वा6 , भर दो पैमाने 7 'अँकुर ' को लगता है मीठा

दिखती है तस्वीर तेरी , इन मीठे पैमानों में
बुनता हूँ हकीक़त मैं , इन झूठे अरमानों में
तोड़ता हूँ तारे मैं, चाँदनी भरे आसमानों में
(और) देखता हूँ ज़न्नत , पत - झड़ के सूखे वीरानों 8 में

खो जाता हूँ जब , काजल सी स्याह तेरी निगाहों में ..... ॥ 




 

1Intense black, 2Unique, 3Market of love, 4Beauty,  5Gulp,
6Bitter,  7Cup/Measure, 8Abandoned place

सोने की चिड़िया


सड़क पर  चलते ये  सैकड़ों  लोग ,
चमकती हेडलाइट्स  और इंजन के शोर ,
सिर  से ढलकता  पसीना  और पैरों  की दौड़ ,
सिग्नल पर रुकना और आगे निकलने  की होड़ 1 ,

स्कूल बस की खिड़कियों से झाँकती उत्सुकता ,
और काले शीशों में बंद एलीट क्लास  जनता ,
बचपन की खुशियों की ख़ातिर नींबू  बेंचती ममता ,
और नकली शो-ऑफ के  साये में खो  रही मानवता ,

नये  दौर की झूठी चमक, लोगों को बाँट  रही है भूख़ ,
प्रोसेस्ड फ़ूड से डरता है किसान ,उसकी ज़मीन रही है सूख ,
कॉल सेन्टर पे जहाँ भर से बात करने वाला , अपने पड़ोसी  से रहता है मूक 2,

पहले  ही खो चुके थे सोना इस चिड़िया का , चांदी तो रहने दे , अब इसे तो ना  लूट || 



 

1Competition, 2Silent/Mute

Thursday, 15 November 2012

ना ढूँढ़ तू उजाले

कि अब ढलता है  सूरज, तो लगता है डर
गहराते है अँधेरे , काटता है यह घर
कि बस यह एक चिराग़ ही है , मुझे भरोसा है जिस पर
जो ग़र  यह भी गया बुझ , तो बड़ी मुश्किल से होगी बसर

पर  चिराग़ के तले  भी  अँधेरा है झाँकता
अब समझाता हूँ खुद को, ना
ढूँढ़ तू उजाले
पर यह मन नहीं मानता ||

साये ही साये है इस अँधेरे में, जहाँ तक जाती है नज़र
है दीखता तो कुछ भी नहीं , ख़ामोशियाँ बुलाती है मग़र
इन ख़ामोशियाँ को सुन के , जाएँ तो जाएँ किधर
सन्नाटा है पसरा
1, अँधेरे है जगमगाते, बड़ी मुश्किल है डगर

और सहमा चिराग़  भी अब रोशनी  है माँगता
अब समझाता हूँ खुद को, ना
ढूँढ़ तू उजाले
पर यह मन नहीं मानता ||






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