बात करें कुछ लोकतंत्र की , देश बड़ा घबराया है
राजनीति के जंगल में अब , घमासान फिर छाया है ।
दो बार विगत सरकारों में , हाथ कमल झकझोरे था
बाबरी और पटिया का हड़कम्प , खेल भाग्य सब फोड़े था ।
नरसिम्हा का उपहार था जो , वो कुशल योग्य पाक-साफ वित्त मंत्री
दस वर्षो के बाद कहलाया , भ्रष्ट मूक मात्र गाँधियों का संत्री ।
बातें बीती बहुत हुई अब , फिर इतिहास सब भूले हैं
पुत्र पिता की राह चला है , भ्रमर कमल फिर झूले हैं ।
माँ का आशीर्वाद लिए पुत्र , महिलाओं को देता थपकी
और कहता आँख मूँद के , हर हाथ शक्ति हर हाथ तरक्की ।
उधर सिंह गुजरात का कहता , जंगल में सब मतवाले हैं
जनता को ढाँढस देता , डरो नहीं ! अब अच्छे दिन आने वाले हैं ।
नेता वरिष्ठ जो भाव विभोर हो , यात्रा रथों की करते थे
अब कुर्सी-लिप्सा के चलते , दल में अंदर बाहर दिखते हैं ।
राजनीति दशकों तक करके भी , सिंह मात खा जाते हैं
पर फ़िल्मी दुनिया के अभिनेता , त्वरित टिकट पा जाते हैं ।
मंच चढ़ नेता भाँषण देता , युवाओं का ख़ून गरम है
हो जाती है उनसे गलती , फाँसी का क़ानून ग़लत है ।
पिता को हो गयी जेल तो , बेटी राजनीति मंच चढ़ बैठी है
अटल नेताओं की ' विदिशा ' में , आकाँक्षा स्वराज की भूखी है ।
प्रधानमँत्री कार्यालय से , पुस्तकें छपवायी जाती हैं
बिक जाता है 'अँकुर ' देखो , यहाँ कीमतें लगाई जाती हैं ।
देश का दुर्भाग्य तो देखो , वोट-बैंक से सिंहासन लुट जाता है
और आप बनाए सरकार तो , स्नातक झापड़ खा जाता है ।
वाराणसी की पावन भूमि , युद्ध-स्थल बन जाती है
मुद्दों का टोटा है , धर्मार्थ राजनीति चलाई जाती है ।
भारत का लोकतंत्र ,जनतंत्र बड़ा निराला है
कहने को जनता का , राजनीतिज्ञों का प्याला है ।
निचोड़ के वे प्रजा को , ये प्याला भर लेते हैं
आजीवन इसके घूँट लगा के , मरणासन जय स्वदेश कह देते हैं ॥